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Hindi Poem : Mai aaj fir se chhitiz par aaya hu

  Hindi Poem  नमस्कार , मैं ऋषभ कुमार कर्ण ; पेश करता हूँ अपनी एक कविता जिसका शीर्षक है  " मैं आज फिर से क्षितिज पर आया हूँ " इस ...

 

Hindi Poem 


नमस्कार , मैं ऋषभ कुमार कर्ण ; पेश करता हूँ अपनी एक कविता जिसका शीर्षक है 

" मैं आज फिर से क्षितिज पर आया हूँ "

इस कविता के माध्यम से मैंने संसार को सूरज के दृष्टिकोण से देखने का बस प्रयास भर किया है। इस प्रयास में मेरी कल्पना शक्ति जितनी तत्पर हो सकती थी बस उतने विस्तार में शब्दों को समेटा है। चूँकि हम मनुष्य है और हमारा दृष्टिकोण और सूरज का दृष्टिकोण किसी भी मायने में समान नहीं हो सकता है परन्तु हम अपने दैनिक जीवन से चीज़ो को देखकर एक निष्कर्ष जरूर निकाल सकते है की क्या ऐसी सहभागिता हो सकती है जो सूरज को और हम मनुष्य को एक धागे में पीरो सके। ये कविता बस इसी खोज का एक छोटा सा नमूना मात्र है। उम्मीद करूँगा की आपको ये पसंद आएगा अगर पसंद आये तो Comment करके जरूर बताये। 





मैं आज फिर से क्षितिज पर आया हूँ


मैं आज फिर से क्षितिज पर आया हूँ 

देखने असली चेहरा , बन के वक़्त का पेहरा

जो किनारो पे ना ठेहरा , वो नीर बनके आया हूँ 

मैं आज फिर से क्षितिज पर आया हूँ 


क्रूरता से बुद्धिमता तक , रेत से विशालता तक

बगीचे के कुसुम से जंगल के बरगद तक 

जो पहचान को मांगे अपना हक़ , वो सूक्ष्म बनके आया हूँ 

मैं आज फिर से क्षितिज पर आया हूँ 


नकाब है इरादों पर , परछाई है वादों पर 

संयम नहीं ज़ज़्बातो पर 

जो धैर्य सिखाये , वो शिकारी बनके आया हूँ 

मैं आज फिर से क्षितिज पर आया हूँ 


देख के इंसानी हालत , मैं सूरज भी हो जाऊँगा अस्त 

अंधकारमय हो जायेगी दुनिया , ना बचेगा वक़्त परत 

जो अँधेरा दूर करे वो गुरु बनके आया हूँ 

मैं आज फिर से क्षितिज पर आया हूँ 



धन्यवाद !


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